By Vinod Gulati
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Wednesday, December 2, 2020
नकारात्मक सोच Negative Thoughts
शीत ऋतु की संध्या में यह जलती हुई लकड़ियों पर हाथ तापना किसे अच्छा नहीं लगता! कितने पहर बीत जाते हैं इन लकड़ियों को चटकाते, घुमाते, पता ही नहीं चलता। यह लकड़ियां पहले जलती हैं और फिर हमें ताप देती हैं और अन्त में राख बन जाती हैं। जरा सोचिए, यह अग्नि उत्पन्न कहां सी होती है। उत्तर है इन लकड़ियों में से। फिर बताइये, यह राख कहां से उत्पन्न होती है। उत्तर वही है, उन्हीं लकड़ियों में से। अब अग्नि और राख - दोनों लकड़ियों से उत्पन्न होती है। जरा सोचिए कि अग्नि, जो इन लकड़ियों को जलाती है और राख वोह जो इस अग्नि को बुझा देती है तो कुछ समझिए कि आपकी ऊर्जा आपके शरीर से उत्पन्न होती है और नकारात्मकता रुपी राख भी आपके भीतर से ही उत्पन्न होती है। आप सोचिए, क्या आप अपने भीतर के प्रकाश को जगा कर इस संसार को प्रकाशित करना चाहते हैं या अपने भीतर की नकारत्मकता को जगा कर इस संसार में अन्धकार फैलाना चाहते हैं?
हर सपने को अपनी सांसों में रखो, हर मंजिल को अपनी बांहों में रखो
हर चीज़ आपकी ही है, बस अपने लक्ष्य को अपनी निगाहों में ही रखो।
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