पग-पग में भेद-भाव है, रक्त रंजित पांव हैं।
जन्म से किसी के सर वंश की छाँव है,
झूठ के रथ पे सवार डाकुयों का गाव हैं।
किसी के पास है छल -कपट, किसी को रूप का वरदान है,
यह सोच के मत बैठ जा कि यह विधि का विधान है।
बज रहा मृदंग है , यह कहता अंग-अंग है,
कि प्राण अभी शेष हैं, मान अभी शेष है।
ऊठा लो ज्ञान का धनुष,
एक कण भी और कुछ माँग मत भगवान से।
ज्ञान की कमान पे लगा दे तू विजय तिलक,
काल के कपाल पे लिख दे तू यह गुलाल से ,
"कि रोक सकता है कोई तो रोक के दिखा मुझे,
हक़ छीनता आया है जो अब छीन के बता मुझे। "
ज्ञान के मच पर सब एक समान है,
विधि का विधान पलट दे ,वोह ब्रह्मास्त्र ज्ञान है,
तो आज से यह ठान लेय, यह बात गांठ बांध ले,
कि कर्म के कुरुक्षेत्र में,
ना रूप काम आता है, ना झूठ काम आता है,
ना जाति काम आती है, ना बाप का नाम काम आता है,
सिर्फ ज्ञान ही आपको आपका हक़ दिलाता है।
ये पंक्तिया एक विज्ञापन का हिस्सा थी, अच्छी लगी,
इसलिए यहाँ उद्धृत कर दी. शायद मेरे मित्रों को पसंद आयें।