Wednesday, December 2, 2020

नकारात्मक सोच Negative Thoughts

 


शीत ऋतु की संध्या में यह जलती हुई लकड़ियों पर हाथ तापना किसे अच्छा नहीं लगता! कितने पहर बीत जाते हैं इन लकड़ियों को चटकाते, घुमाते, पता ही नहीं चलता। यह लकड़ियां पहले जलती हैं और फिर हमें ताप देती हैं और अन्त में राख बन जाती हैं। जरा सोचिए, यह अग्नि उत्पन्न कहां सी होती है। उत्तर है इन लकड़ियों में से। फिर बताइये, यह राख कहां से उत्पन्न होती है। उत्तर वही है, उन्हीं लकड़ियों में से। अब अग्नि और राख - दोनों लकड़ियों से उत्पन्न होती है। जरा सोचिए कि अग्नि, जो इन लकड़ियों को जलाती है और राख वोह जो इस अग्नि को बुझा देती है तो कुछ समझिए कि आपकी ऊर्जा आपके शरीर से उत्पन्न होती है और नकारात्मकता रुपी राख भी आपके भीतर से ही उत्पन्न होती है। आप सोचिए, क्या आप अपने भीतर के प्रकाश को जगा कर इस संसार को प्रकाशित करना चाहते हैं या अपने भीतर की नकारत्मकता को जगा कर इस संसार में अन्धकार फैलाना चाहते हैं?

हर सपने को अपनी सांसों में रखो, हर मंजिल को अपनी बांहों में रखो

हर चीज़ आपकी ही है, बस अपने लक्ष्य को अपनी निगाहों में ही रखो।


Tuesday, December 1, 2020

मन पर नियंत्रण Control over Mind

 मन पर नियंत्रण

आपने यह अक्सर सुना होगा कि आज मेरा मन नहीं है। ऐसे वाक्य दिन में हम जाने कितनी बार बोलते होंगे और इनके चलते न जाने दिन भर कितना समय खराब कर देते हैं। भले ही मन हमारा होता है लेकिन वोह कभी भी हमारा हितैषी नहीं होता। हमारे साथ आँख मिचौली खेलता रहता है। आप कोई काम करना चाह रहे हैं और वोह काम आपके लिए जरुरी भी बहुत है, आप पायेंगे कि आपका मन कभी भी आपके साथ खड़ा नहीं होता। हां, गलत कार्यों, मनोरंजन और फालतू के कार्यों के लिए आपके साथ भी क्या, आप से भी दो कदम आगे चलेगा।

जहां पर बात किसी उद्देश्य की आयेगी, शारीरिक श्रम की आयेगी, मानसिक परेशानी आयेगी, आपका मन उसके विरोध में खड़ा हो जायेगा। क्या यह सत्य नहीं है? हमारा मन ऐसे-ऐसे तर्क ढूंढ लेगा कि हम यहां नहीं मिलेंगे, सचमुच वोह कार्य अभी नहीं किया जाना चाहिए। दुर्भाग्यवश हम यह निर्णय यह जानते हुए भी ले लेते हैं कि इस काम को आगे चल कर करना ही पड़ेगा। इसी के चलते हम जाने कितने ही अवसर गंवा देते हैं!

क्या हम अपने मन पर नियंत्रण नहीं रख सकते? क्या इस तरह की मनमानी करता रहेगा? जब भी आपका मन किसी कार्य को कल के लिए टाल दे, उसी समय अपने आदेश के विरोध में खड़े हो जायें। मन से आदेश लेने की बजाय मन को यह आदेश दें कि यह काम अभी होना है। मन बहुत शक्तिशाली है उन लोगों के लिए जो बहुत कमजोर हैं। लेकिन मन कमजोर है, उन लोगों के लिए जो बहुत शक्तिशाली है। इस पर विचार मंथन जरुर करें।

Tuesday, November 24, 2020

तकलीफों का समाधान


क्या आप कभी किसी झरने के पास बैठें हैं? उसकी ध्वनि सुनी है? वो ध्वनि, मन को शांत कर देती है। हमारे अन्दर एक आंनद सा भर देती है। एक नैसर्गिक संगीत सुनाई देता है। कभी सोचा है कि यह संगीत उत्पन्न करने के लिए जल को कितना परिश्रम करना पड़ता है? क्या कुछ करना पड़ा होगा, सोचिए वो जल कहां-कहां से गिरा होगा, वोह किन-किन चट्टानों से जाकर टकराया होगा? किसी तीखी रेखाओं को लांघा होगा, अपने तन में समाए उन पत्थरों से कैसे संघर्ष किया होगा? कैसे आगे बढ़ा होगा?  यह सब होने के पश्चात् ही यह संगीत सुनना सम्भव हुआ होगा। झरने का यह सुन्दर संगीत आपके कानों तक कभी पहुंचता ही नहीं, यदि उस जल का विरोध करने वाले पत्थर न होते। 

इन सबका तात्पर्य एक ही है कि इन बाधाओं का सामना करें। सभी के जीवन में बाधाएं तो आती हैं उनका सामना करना सीखें और जीवन में आगे बढे़। आप भी नैसर्गिक संगीत को उत्पन्न करें और संसार में शान्ति फैलाएं। संसार में नियति बहुत कुछ निश्चित करती है जैसे हर एक वस्तु की सीमा, शरीर से जाने वाला जल, उसकी सीमा भी नियति निश्चित कर चुकी है, कैसे? यदि आपने उचित समय पर परिश्रम करके अपना पसीना नहीं बहाया तो कुछ समय बाद आपको आंसू बहाने होंगे। यदि भाग्य से सब कुछ मिल भी जाए तो कर्म से रक्षित करना पड़ता हैं यदि परिश्रम करोगे तो जो पाया है, उसे सहेज कर रख सकोगे और जो पाना चाहते हो वो अवष्य ही पा जाओगे। यदि परिश्रम नहीं करोगे तो जो पाया है, उसे तो खो ही दोगे और जो पाना चाहते हो, उसका तो प्रश्न ही नहीं उठता। यह आपके हाथ में है कि आप पसीना बहाना चाहते हो या आंसू।

’’कोई लक्ष्य मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं! हारा वही है जो लड़ा नहीं।’’

Friday, November 20, 2020

राम का नाम Lord Rama



राम केवल नाम नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का अधिष्ठान तत्व है। यह भारतीय संस्कार परंपरा की रीढ़ है। यह सनातन संस्कृति एवं धर्म का प्राणतन्त्र है। यह शब्द राष्ट्र मंगल का जयघोष है। राम आदर्श के चरमबिन्दु हैं। धीरता के सागर हैं। विनम्रता के शिखर हैं। मैत्रीभाव के गौरव हैं। वात्सल्य की गागर हैं। यदि भारतीय सनातनी गौरवमयी परंपरा की कल्पना राम नाम के बिना की जाए तो यह संभव नहीं है। राम हर जन के रोम-रोम में बसे हुए हैं। राम भारतीय जनमानस के हृदय का स्पंदन हैं।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जीवन प्रेरणा की पुस्तक है। संस्कार की पाठशाला है। व्यक्ति का जीवन कैसा हो? वह अपने जीवन में उच्च आदर्श कैसे स्थापित करे? यह हम राम के जीवन से सीख सकते हैं। राम केवल आध्यात्मिक पुरुष नहीं हैं। वह आधुनिकता में भी नवीनता के चरम हैं।  राम में प्रबंधन है। राम प्रबंधन के श्रेष्ठ गुण हैं। राम समाज अभियांत्रिकी के मूल हैं। भारतीय जनमानस सदियों से राम नाम से ही जीवन का अर्थ सीखता रहा है। राम नाम के सहारे ही वह जीवन नैया का पार लगाने का उपक्रम करता है। यह नाम ही उसे कई अवगुणों से बचाता आ रहा है।

राम नाम में अद्भुत लोकजीवन बसा हुआ है। यह नामशक्ति एवं सामर्थ्य की घुट्टी है। यह सकारात्मकता का उच्चतम बिंदु है। आलोचना का सकारात्मकता का उच्चतम बिंदु है। आलोचना का विष पीकर व्यावहारिकता का अमृत कैसे बांटा जाए, यह राम से सीखा जा सकता है। राम और राम नाम दोनों ही हमें भक्ति एवं शक्ति का मार्ग दिखाते हैं। यह ऐसा मार्ग है जो जीवन की वास्तविकता से हमें परिचित कराता है। राम नाम के सहारे ऋषि-मुनियों ने जीवन तत्वों की खोज की है। ये तत्व मोक्ष के द्वार खोलते हैं, जिन्हें प्राप्त कर जीवन अमृत रस का पान किया जा सकता है। इससे हमें वैचारिक शुचिता का उपहार मिलता है। 

                                                                                     -ललित शौर्य दैनिक जागरण दिनांक 6 सितम्बर, 2020

Saturday, October 31, 2020

रिश्ते कैसे होने चाहिए? How should you maintain relations



अपने वोह नहीं होते, जो रोने पर आते हैं, अपने वोह होते हैं जो रोने नहीं देते। जो दूसरों को इज्ज़त देता है, असल में वोह खुद इज्ज़तदार होता है, क्योंकि इन्सान दूसरों को वही देता है जो उसके पास होता है। जिन रिश्तों में हर बात का मतलब समझाना पड़े और सफाई देनी पड़े, वोह रिश्ते, रिश्ते नहीं बल्कि बोझ होते हैं। मेहनत लगती है, सपनों को सच बनाने में, हौसला बनाए रखना होता है, बुलन्दियों को पाने में, बरसों लगते हैं जिन्दगी बनाने में, और जिन्दगी फिर भी कम पड़ती है रिश्तों को निभाने में। किसी को रुलाकर, आज तक कोई कभी न हंस पाया है, यही विधि का विधान है जिसे आज तक कोई न समझ पाया।

अजीब खेल है उस विधाता का, लिखता भी वही है, मिटाता भी वही है, भटकाता है, तो राह दिखाता भी वही है। उलझाता भी वही है और सुलझाता भी वही है। जिन्दगी की मुश्किल घड़ी में दिखता नहीं, मगर साथ देता भी वही है। मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है। सिर्फ पंखों से कुछ नहीं होता, दोस्तो, होसलों से उड़ान होती है।

जब आप भगवान से शक्ति मांगते हैं, तो वो आपको कठिनाईयों में डाल देता है ताकि आपकी हिम्मत बढ़े और, आप शक्तिशाली बनें। विश्वास वह शक्ति है जिससे उजड़ी दुनिया में भी प्रकाश लाया जा सकता है। मोमबत्ती के अन्दर पिरोया गया धागा मोमबत्ती से पूछता है जब मैं जलता हूँ तो तूं रोती क्यों है? मोमबत्ती ने जबाब दिया कि जब किसी को दिल के अन्दर जगह दे दी जाये और वोह छोड़कर चला जाये,  रोना तो आयेगा ही!

बनना है तो मेंहदी के पत्तों जैसा बनिए, 

जो सूख कर भी रंग देते हैं।  

Saturday, October 24, 2020

Father पिता



बेशक पिता लोरी नहीं सुनाते, माँ जैसा प्यार नहीं जताते। लेकिन दिन भर की थकान के बावजूद रात का पहरा बन जाते हैं। और जब निकलते हैं घर से तिनकों की खोज में किसी की किताबें, किसी के खिलौने, किसी की मिठाई और किसी की दवाई पूरा करते हैं घर भर के सपने पिता कब के होते हैं, खुद के अपने। पिता रोटी है, कपड़ा है और मकान है, पिता नन्हें से परिन्दे का बड़ा सा आसमान है। पिता से माँ की बिन्दी और माँ का सुहाग है। पिता है तो बच्चों के सारे सपने हैं, पिता है तो बाजार के सारे खिलौने अपने हैं। 

मंजिल दूर और सफर बहुत है, छोटी सी जिन्दगी में फिक्र बहुत है। मार डालती यह दुनिया कब की हमें, लेकिन पापा आपके प्यार में असर बहुत है। पिता के बिना जिन्दगी वीरान होती है, तन्हा सफर में हर रात सुनसान होती है। जिन्दगी में पिता का होना जरुरी है, पिता के साथ से हर राह आसान होती है। धरती सा धीरज दिया आसमान सी ऊंचाई है। जिन्दगी को तराश कर खुदा ने यह तस्वीर बनाई है। हर दुःख हो बच्चों का, खुद सह लेते हैं उस खुदा की जीवित प्रतिमा को हम पिता कहते हैं। मुझे रख दिया छांव में, खुद जलते रहे धूप में। मैंने देखा है एक ऐसा फरिश्ता, अपने पिता के रुप में। एक ऐसी रोशनी, जो उम्र भर झिलमिलाती है। सीख तो अन्तिम समय भी काम आती है। पिता वह षह है जिससे हर मुसीबत हार जाती है। सभी रिश्ते हैं मतलब के, पिता ही असल साथी है। वही है धन्य जो चरणों में उनके शीश झुकाता है। पिता कहते हैं जिसे हम, वोह ही विधाता है।


Tuesday, October 20, 2020

सफल जिन्दगी के लिए सुझाव (Suggestions for a successful life - 1)


1- सबसे ज्यादा खतरनाक आदत है, शक करने की आदत। यह किसी भी अच्छे रिश्ते को बर्बाद कर देती है।

2- किसी का हाल पूछ लेने से उसका हाल ठीक नहीं हो जाता, मगर उसे तसल्ली हो जाती है कि इस भीड़ भरी दुनिया में कोई उसका भी अपना है।

3- जीवन में अपने सपनों को पूरा करने के लिए कभी भी अपनों से दूर न जायें क्योंकि अपनों के बिना जीवन में सपनों का कोई अर्थ नहीं है।

4- अहम् की अकड़ ज्यादा देर तक रह नहीं सकती। 

5- मौत की घड़ी कभी टल नहीं सकती। 

6- लूट कर दौलत भले ही जमा कर लो। पाप की कमाई कभी फल नहीं सकती। 

7- ताकत और पैसा जिन्दगी के फल हैं, परिवार और मित्र जिन्दगी की जड़ हैं, हम फल के बिना अपने आपको चला सकते हैं लेकिन जड़ के बिना खड़े नहीं हो सकते। 

8- जिन्दगी जीना आसान नहीं होता। बिना संघर्ष के कोई महान नहीं होता। 

9- जब तक न पड़े, हथौड़े की चोट पत्थर भी भगवान नहीं होता। हमेशा हंसते रहिए, एक दिन जिन्दगी भी आपको परेशान करते-करते थक जायेगी। 

10- लगी रहे नजर किनारे पे, कभी तो लहर आयेगी। न जाने तकदीर के किस झोंके से जिन्दगी बदल जायेगी। क्यों डरे कि जिन्दगी मे क्या होगा? 

11- हर वक्त क्यों सोचें कि बुरा होगा? बढ़ते रहें बस मंजिलों की ओर, हमें कुछ मिले, न मिले!  अनुभव तो नया होगा। 

12- कभी-कभी उस इन्सान की कद्र का पता हमे तब चलता है, जब वह इस दुनिया से जा चुका होता है। जिनके लिए कमाते हैं, उन्हें ही समय नहीं दे पाते, जिन्दगी बहुत छोटी है, इसको यूं ही मत गवाइये। 

13- जिन्दगी मुट्ठी में रेत की तरह है, न जाने कब फिसल जाये!

14- उस इन्सान से दोस्ती मत करो, जो अपनी माँ से ऊँची आवाज में बात करता है क्योंकि जो अपनी माँ की इज्ज़त नहीं कर सकता, वो आपकी इज्ज़त कभी भी नहीं करेगा।

15- फूलों की तरह मुस्कराते रहिए, भवरों की तरह गुनगुनाते रहिए। चुप रहने से रिश्ते भी उदास हो जाते हैं।


Thursday, August 6, 2020

Life Means Your Present. जीवन का अर्थ आपके वर्तमान से है।


जो लोग सहज-स्वाभाविक प्रसन्नता पर अपने सिद्धान्तों को प्राथमिकता देते हैं वे अपनी बनाई हुई शर्त्तों से बाहर खुश नहीं हो सकते। उन्होंने अपने खुश होने का एक मापदंड बना रखा है। लेकिन यह गलत है। जीवन छोटा है, ऐसे में किसी के बेहद मूल्यवान समय को नष्ट करना पाप ही है। लेकिन जीवन में सक्रियता का अर्थ अगर खुद को खो देना है, तो वह सक्रियता भी समय नष्ट करने के बराबर है।

हमारे जीवन में समाचार पत्र या समाचार ग्रहण करना, कैफे जाना या पर्यटन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये हमें अनुभव देते हैं और एक हद तक भय से भी मुक्त करते हैं। यदि हम अपने कार्यालय या फैक्ट्ररी में नियत घंटों की अवधि तक खुद को छिपाये रखें तो षायद हमें अपने आस-पास भी निरंतर हो रहे परिवर्तनों का आभास नहीं हो पायगा। यदि कोई अपने कार्यालय में या प्लान्ट में जोर जोर से चिल्लाता है तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वह उस स्थान के बाहर अकेला है और कार्यालय या प्लान्ट में उसकी चिल्लाहट उसके अकेलेपन की पीड़ा को कम करती है।

कभी-कभी मेरी इच्छा करती है कि मैं एक उपन्यास लिखूं जिसमें नायक कहे कि यदि कार्यालय बन्द हो जाये तो उसका क्या होगा। या यह कहे कि उसकी पत्नी मर गई है लेकिन सौभाग्य से उसे कुछ आर्डर मिल गये हैं जिन्हें कल तक पूरा करना है। आपको पर्यटन इन चिन्ताओं से मुक्त कर सकता है। परिचित लोगों की परिचित भाषा से दूर, रोजमर्रा की चीजों और उपकरणों से वंचित कर रहा आपके चेहरे पर पड़ा औपचारिकता का नकाब आपको फेंक देना चाहिए और यह तभी संभव है जब आप ऐसा करने का दृढ़ संकल्प करते हैं।

जीवन छोटा है, ऐसे में किसी के बेहद मूल्यवान समय को नष्ट करना पाप है। वे कहते हैं कि वे सक्रिय हैं। लेकिन जीवन में सक्रियता का अर्थ अगर स्वयं को पूरी तरह अपने कार्य में खो देना है तो वह सक्रियता भी समय की बर्बादी है। मान लो, आपने कोई दिन निश्चित किया है कि आप उस दिन विश्राम करेंगे। और उस दिन जब आप विश्राम करने के लिए तैयार होते हैं आपका दिल खुशियों की तलाश में जुटना चाहता है कि कोई दुखी हताश व्यक्ति आपसे मिलने आ जाता है, आप महसूस करेंगे कि वह दुरुह क्षण भी आपके हाथ से फिसल जायेगा। तब आपको निश्चय करना होगा कि आप क्या करेंगे। 

हम यह भी मान सकते हैं कि सहज और मानवीय होना ज्यादा बेहतर है। इन हालातों में दुखी मानव से बात करना ज्यादा अच्छा होगा। लेकिन हर बार आप ऐसा करेंगे तो आप स्वयं भी दुखी हो सकते हैं। आपको अपनी प्राथमिकताओं को निश्चित करना होगा कि आप पर्यटन पर जाना चाहते हैं या अपने उन पारिवारिक लोगों से मिलना चाहते हैं जिनसे कार्य की अधिकता के कारण काफी समय से मिल नहीं पाये और तदानुसार आपको अपने कार्यक्रम निश्चित करने चाहिए। आपको वर्तमान में जीना होगा और सुखद वर्तमान ही आपके सुखद भविष्य की बुनियाद है।

Sunday, August 2, 2020

Father and Son - Relationship between both (पिता पुत्र)

पिता पुत्र की जोड़ी भी बड़ी कमाल की जोड़ी होती है ।

दुनिया के किसी भी सम्बन्ध में,
अगर सबसे कम बोल-चाल है,
तो वो है पिता-पुत्र की जोड़ी में !

घर में दोनों अंजान से होते हैं,
एक दूसरे के बहुत कम बात करते हैं, कोशिश भर एक दूसरे से पर्याप्त दूरी ही बनाए रखते हैं।बस ऐसा समझो कि
दुश्मनी ही नहीं होती।
माहौल कभी भी छोटी छोटी सी बात पर भी खराब होने का डर
सा बना रहता है और इन दोनों की नजदीकियों पर मां की पैनी नज़र हमेशा बनी रहती है !

ऐसा होता है जब लड़का,
अपनी जवानी पार कर,
अगले पड़ाव पर चढ़ता है !
तो यहाँ,
इशारों से बाते होने लगती हैं,
या फिर,
इनके बीच मध्यस्थ का दायित्व निभाती है माँ !

पिता अक्सर पुत्र की माँ से कहता है,
जा, "उससे कह देना"
और,
पुत्र अक्सर अपनी माँ से कहता है,
"पापा से पूछ लो ना"

इन्हीं दोनों धुरियों के बीच,
घूमती रहती है माँ ।

जब एक,
कहीं होता है,
तो दूसरा,
वहां नहीं होने की,
कोशिश करता है,

शायद,
पिता-पुत्र नज़दीकी से डरते हैं ।
जबकि,
वो डर नज़दीकी का नहीं है,
डर है,
माहौल बिगड़ने का !

भारतीय पिता ने शायद ही किसी बेटे को,
कभी कहा हो,
कि बेटा,
मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ , जबकि वह प्यार बेइंतहा ही करता है!

पिता के अनंत रौद्र का उत्तराधिकारी भी वही होता है,
क्योंकि,
पिता, हर पल ज़िन्दगी में,
अपने बेटे को,
अभिमन्यु सा पाता है !

पिता समझता है,
कि इसे सम्भलना होगा,
इसे मजबूत बनना होगा,
ताकि,
ज़िम्मेदारियो का बोझ,
इसको दबा न सके ।
पिता सोचता है,
जब मैं चला जाऊँगा,
इसकी माँ भी चली जाएगी,
बेटियाँ अपने घर चली जायेंगी,
तब,
रह जाएगा सिर्फ ये,
जिसे, हर-दम, हर-कदम,
परिवार के लिए, अपने छोटे भाई बहिन के लिए,
आजीविका के लिए,
बहु के लिए,
अपने बच्चों के लिए,
चुनौतियों से,
सामाजिक जटिलताओं से,
लड़ना होगा !

पिता जानता है कि,
हर बात,
घर पर नहीं बताई जा सकती,
इसलिए इसे,
खामोशी से ग़म छुपाने सीखने होंगें !

परिवार और बच्चों के विरुद्ध खड़ी,
हर विशालकाय मुसीबत को,
अपने हौसले से,
दूर करना होगा।
कभी कभी
तो ख़ुद की जरूरतों और ख्वाइशों का वध करना होगा ।
इसलिए,
वो कभी पुत्र-प्रेम प्रदर्शित नहीं करता !

पिता जानता है कि,
प्रेम कमज़ोर बनाता है !
फिर कई बार उसका प्रेम,
झल्लाहट या गुस्सा बनकर,
निकलता है !

वो गुस्सा अपने बेटे की
कमियों के लिए नहीं होता,
वो झल्लाहट है,
जल्द निकलते समय के लिए,
वो जानता है,
उसकी मौजूदगी की,
अनिश्चितताओं को !

पिता चाहता है,
कहीं ऐसा ना हो कि,
इस अभिमन्यु की हार,
मेरे द्वारा दी गई,
कम शिक्षा के कारण हो जाये,
पिता चाहता है कि,
पुत्र जल्द से जल्द सब सीख ले,
वो गलतियाँ करना बंद करे,
हालांकि गलतियां होना एक मानवीय गुण है,
लेकिन वह चाहता है कि उसका बेटा सिर्फ गलतियों से सबक लेना सीख ले !
सामाजिक जीवन में बहुत उतार चढ़ाव आते हैं, रिश्ते निभाना भी सीखे !

फिर,
वो समय आता है जबकि,
पिता और बेटे दोनों को,
अपनी बढ़ती उम्र का,
एहसास होने लगता है,
बेटा अब केवल बेटा नहीं, पिता भी बन चुका होता है,
कड़ी कमज़ोर होने लगती है ।

पिता की सीख देने की लालसा,
और,
बेटे का,
उस भावना को नहीं समझ पाना,
वो सौम्यता भी खो देता है !
यही वो समय होता है जब,
बेटे को लगता है कि,
उसका पिता ग़लत है,
बस इसी समय को समझदारी से निकालना होता है,
वरना होता कुछ नहीं है,
बस बढ़ती झुर्रियां और
बूढ़ा होता शरीर
जल्द बीमारियों को घेर लेता है !

फिर,
सभी को बेटे का इंतज़ार करते हुए माँ तो दिखती है,
पर,
पीछे रात भर से जागा,
पिता नहीं दिखता,
जिसकी उम्र और झुर्रियां,
और बढ़ती जाती है, बीमारियां
भी शरीर को घेर रहीं हैं !

 पिता अड़ियल रवैए का हो सकता है लेकिन वास्तव में वह नारियल की तरह होता है !

कब समझेंगे बेटे,
कब समझेंगे बाप,
कब समझेगी दुनिया.!

पता है क्या होता है,
उस आख़िरी मुलाकात में,
जब,
जिन हाथों की उंगलियां पकड़,
पिता ने चलना सिखाया था,
वही हाथ,
लकड़ी के ढेर पर पड़े
पिता को
लकड़ियों से ढकते हैं,
उसे घी से भिगोते हैं,
और उसे जलाते हैं, इसे ही पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाना कहते हैं !

ये होता है,
हो रहा है,
होता चला जाएगा !

जो नहीं हो रहा,
और जो हो सकता है,
वो ये,
कि,
हम जल्द से जल्द,
कहना शुरु कर दें,
हम आपस में,
कितना प्यार करते हैं.
और कुछ नहीं तो कम से कम घर में हंस के मुस्कुरा कर बात तो की ही जा सकती है, सम्मान पूर्वक !

फिर, समय निकलने के बाद पश्चाताप वश यह ना कहना पड़े-

हे मेरे महान पिता..
मेरे गौरव,
मेरे आदर्श,
मेरा संस्कार,
मेरा स्वाभिमान,
मेरा अस्तित्व...
मैं न तो इस क्रूर समय की गति को समझ पाया..
और न ही,
आपको अपने दिल की बात,
कह पाया...!!

Saturday, August 1, 2020

Mother (माँ)


माँ अर्लाम है, माँ डाक्टर है, माँ हौसला है, माँ हिम्मत है, माँ कमजोरी है, माँ प्यार है, माँ दोस्त है। मेरी तकदीर में एक भी गम न होता, अगर तकदीर लिखने का हक मेरी माँ को होता। हां, दोस्तो! ऐसी ही होती है, माँ। रोटी एक माँगता हूँ, लाकर दो देती हैं। माँ तो सबकी जगह ले लेती हैं, लेकिन माँ की जगह कोई नहीं ले सकता। इसलिए कहते हैं कि कभी अपनी माँ का दिल नहीं दुःखाना चाहिए।

हर रिश्ते में मिलावट हो सकती है लेकिन माँ के रिश्ते में कभी मिलावट नहीं देखी। हम थक जाते हैं, मगर माँ के चेहरे पर कभी थकावट नहीं देखी। दिन भर की थकावट के बाद जब हमें भूख लगती है, तो माँ का खाना याद आता है। वो चूल्हे पर हाथ जलाकर रोटी पकाना और फिर डांट-डांट कर खिलाना याद आता है। याद रखना, जब पूरी दुनिया आपका साथ छोड़ दे, तब भी माँ आपका साथ नहीं छोड़ेगी। वो सदा आपका भला ही चाहती है। जब कभी चोट लग जाती है तब पहला लफ्ज़ मुँह से ’’माँ’’ ही निकलता है। बचपन में बिना बोले माँ हमारी बातों को समझ जाती थी और, आज हम हर बात पर कहते हैं कि माँ, आप नहीं समझोगी। एक माँ ही है, जो बिना छुट्टी और मेहनताना वसूले सालों साल अपनी औलाद के सुखों का ख्याल रखती है।

दुनिया क्या कहती है, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। माँ नौ महीने अपने पेट में रखती है, हमें चलना सिखाती है, जिन्दगी भर अपने दिल में रखती है, उस माँ की कद्र कीजिए। दोस्त पूछते हैं कि कितना कमाया? पत्नी पूछती है कि कितना बचाया? बेटा पूछेगा कि मेरे लिए क्या लाए? लेकिन माँ एक ऐसी शख्सियत है जो पूछती है कि बेटा कुछ खाया कि नहीं!! माँ ईश्वर का प्रतिनिधि है और बच्चों के लिए स्वयं ईश्वर है।

Saturday, July 25, 2020

Be Independent (आत्म निर्भर बनो। )

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती मुंबई में आर्य समाज मंदिर में प्रवचन कर रहे थे। प्रवचन के बाद एक व्यवसायी ने स्वामी जी को प्रणाम किया तथा अपने दस वर्षीय पुत्र को आर्शीवाद देने के लिए प्रार्थना की।

स्वामी जी ने उसके पुत्र से पूछा, ’’बेटा, अपना काम स्वयं करते हो या नौकर से करवाते हो?’’ उसने विनम्रतापूर्वक कहा, ’’माता-पिता मुझे कोई कार्य करने ही नहीं देते, नौकर से करवाते हैं।’’ स्वामी जी ने उसे समझाया, ’’ आज से अपना कार्य स्वयं करने का संकल्प लो। प्रातः काल सूर्योदय से पहले शैया त्यागकर मुंह-हाथ धोकर सबसे पहले अपने माता-पिता को प्रणाम करो। नौकर पर निर्भर रहने से तुम आलसी बन जाओगे। जो कार्य स्वयं न कर सको, उसके लिए दूसरों लोगों से सहायता लो।’’

स्वामी जी ने फिर उसके पिता की ओर देखकर कहा, ’’तुम धनिक लोग अपने बच्चों को आलसी बनाने के अपराधी हो। बच्चों को स्वयं कार्य करने दो। तभी वे आत्मनिर्भर बन सकेंगे। स्वामी जी के प्रेरणादायक, कल्याणकारी उपदेश सुनकर पिता-पुत्र उनके सामने नतमस्तक हो गये।
-दैनिक अमर उजाला से साभार संकलित