Thursday, August 6, 2020

Life Means Your Present. जीवन का अर्थ आपके वर्तमान से है।


जो लोग सहज-स्वाभाविक प्रसन्नता पर अपने सिद्धान्तों को प्राथमिकता देते हैं वे अपनी बनाई हुई शर्त्तों से बाहर खुश नहीं हो सकते। उन्होंने अपने खुश होने का एक मापदंड बना रखा है। लेकिन यह गलत है। जीवन छोटा है, ऐसे में किसी के बेहद मूल्यवान समय को नष्ट करना पाप ही है। लेकिन जीवन में सक्रियता का अर्थ अगर खुद को खो देना है, तो वह सक्रियता भी समय नष्ट करने के बराबर है।

हमारे जीवन में समाचार पत्र या समाचार ग्रहण करना, कैफे जाना या पर्यटन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये हमें अनुभव देते हैं और एक हद तक भय से भी मुक्त करते हैं। यदि हम अपने कार्यालय या फैक्ट्ररी में नियत घंटों की अवधि तक खुद को छिपाये रखें तो षायद हमें अपने आस-पास भी निरंतर हो रहे परिवर्तनों का आभास नहीं हो पायगा। यदि कोई अपने कार्यालय में या प्लान्ट में जोर जोर से चिल्लाता है तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वह उस स्थान के बाहर अकेला है और कार्यालय या प्लान्ट में उसकी चिल्लाहट उसके अकेलेपन की पीड़ा को कम करती है।

कभी-कभी मेरी इच्छा करती है कि मैं एक उपन्यास लिखूं जिसमें नायक कहे कि यदि कार्यालय बन्द हो जाये तो उसका क्या होगा। या यह कहे कि उसकी पत्नी मर गई है लेकिन सौभाग्य से उसे कुछ आर्डर मिल गये हैं जिन्हें कल तक पूरा करना है। आपको पर्यटन इन चिन्ताओं से मुक्त कर सकता है। परिचित लोगों की परिचित भाषा से दूर, रोजमर्रा की चीजों और उपकरणों से वंचित कर रहा आपके चेहरे पर पड़ा औपचारिकता का नकाब आपको फेंक देना चाहिए और यह तभी संभव है जब आप ऐसा करने का दृढ़ संकल्प करते हैं।

जीवन छोटा है, ऐसे में किसी के बेहद मूल्यवान समय को नष्ट करना पाप है। वे कहते हैं कि वे सक्रिय हैं। लेकिन जीवन में सक्रियता का अर्थ अगर स्वयं को पूरी तरह अपने कार्य में खो देना है तो वह सक्रियता भी समय की बर्बादी है। मान लो, आपने कोई दिन निश्चित किया है कि आप उस दिन विश्राम करेंगे। और उस दिन जब आप विश्राम करने के लिए तैयार होते हैं आपका दिल खुशियों की तलाश में जुटना चाहता है कि कोई दुखी हताश व्यक्ति आपसे मिलने आ जाता है, आप महसूस करेंगे कि वह दुरुह क्षण भी आपके हाथ से फिसल जायेगा। तब आपको निश्चय करना होगा कि आप क्या करेंगे। 

हम यह भी मान सकते हैं कि सहज और मानवीय होना ज्यादा बेहतर है। इन हालातों में दुखी मानव से बात करना ज्यादा अच्छा होगा। लेकिन हर बार आप ऐसा करेंगे तो आप स्वयं भी दुखी हो सकते हैं। आपको अपनी प्राथमिकताओं को निश्चित करना होगा कि आप पर्यटन पर जाना चाहते हैं या अपने उन पारिवारिक लोगों से मिलना चाहते हैं जिनसे कार्य की अधिकता के कारण काफी समय से मिल नहीं पाये और तदानुसार आपको अपने कार्यक्रम निश्चित करने चाहिए। आपको वर्तमान में जीना होगा और सुखद वर्तमान ही आपके सुखद भविष्य की बुनियाद है।

Sunday, August 2, 2020

Father and Son - Relationship between both (पिता पुत्र)

पिता पुत्र की जोड़ी भी बड़ी कमाल की जोड़ी होती है ।

दुनिया के किसी भी सम्बन्ध में,
अगर सबसे कम बोल-चाल है,
तो वो है पिता-पुत्र की जोड़ी में !

घर में दोनों अंजान से होते हैं,
एक दूसरे के बहुत कम बात करते हैं, कोशिश भर एक दूसरे से पर्याप्त दूरी ही बनाए रखते हैं।बस ऐसा समझो कि
दुश्मनी ही नहीं होती।
माहौल कभी भी छोटी छोटी सी बात पर भी खराब होने का डर
सा बना रहता है और इन दोनों की नजदीकियों पर मां की पैनी नज़र हमेशा बनी रहती है !

ऐसा होता है जब लड़का,
अपनी जवानी पार कर,
अगले पड़ाव पर चढ़ता है !
तो यहाँ,
इशारों से बाते होने लगती हैं,
या फिर,
इनके बीच मध्यस्थ का दायित्व निभाती है माँ !

पिता अक्सर पुत्र की माँ से कहता है,
जा, "उससे कह देना"
और,
पुत्र अक्सर अपनी माँ से कहता है,
"पापा से पूछ लो ना"

इन्हीं दोनों धुरियों के बीच,
घूमती रहती है माँ ।

जब एक,
कहीं होता है,
तो दूसरा,
वहां नहीं होने की,
कोशिश करता है,

शायद,
पिता-पुत्र नज़दीकी से डरते हैं ।
जबकि,
वो डर नज़दीकी का नहीं है,
डर है,
माहौल बिगड़ने का !

भारतीय पिता ने शायद ही किसी बेटे को,
कभी कहा हो,
कि बेटा,
मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ , जबकि वह प्यार बेइंतहा ही करता है!

पिता के अनंत रौद्र का उत्तराधिकारी भी वही होता है,
क्योंकि,
पिता, हर पल ज़िन्दगी में,
अपने बेटे को,
अभिमन्यु सा पाता है !

पिता समझता है,
कि इसे सम्भलना होगा,
इसे मजबूत बनना होगा,
ताकि,
ज़िम्मेदारियो का बोझ,
इसको दबा न सके ।
पिता सोचता है,
जब मैं चला जाऊँगा,
इसकी माँ भी चली जाएगी,
बेटियाँ अपने घर चली जायेंगी,
तब,
रह जाएगा सिर्फ ये,
जिसे, हर-दम, हर-कदम,
परिवार के लिए, अपने छोटे भाई बहिन के लिए,
आजीविका के लिए,
बहु के लिए,
अपने बच्चों के लिए,
चुनौतियों से,
सामाजिक जटिलताओं से,
लड़ना होगा !

पिता जानता है कि,
हर बात,
घर पर नहीं बताई जा सकती,
इसलिए इसे,
खामोशी से ग़म छुपाने सीखने होंगें !

परिवार और बच्चों के विरुद्ध खड़ी,
हर विशालकाय मुसीबत को,
अपने हौसले से,
दूर करना होगा।
कभी कभी
तो ख़ुद की जरूरतों और ख्वाइशों का वध करना होगा ।
इसलिए,
वो कभी पुत्र-प्रेम प्रदर्शित नहीं करता !

पिता जानता है कि,
प्रेम कमज़ोर बनाता है !
फिर कई बार उसका प्रेम,
झल्लाहट या गुस्सा बनकर,
निकलता है !

वो गुस्सा अपने बेटे की
कमियों के लिए नहीं होता,
वो झल्लाहट है,
जल्द निकलते समय के लिए,
वो जानता है,
उसकी मौजूदगी की,
अनिश्चितताओं को !

पिता चाहता है,
कहीं ऐसा ना हो कि,
इस अभिमन्यु की हार,
मेरे द्वारा दी गई,
कम शिक्षा के कारण हो जाये,
पिता चाहता है कि,
पुत्र जल्द से जल्द सब सीख ले,
वो गलतियाँ करना बंद करे,
हालांकि गलतियां होना एक मानवीय गुण है,
लेकिन वह चाहता है कि उसका बेटा सिर्फ गलतियों से सबक लेना सीख ले !
सामाजिक जीवन में बहुत उतार चढ़ाव आते हैं, रिश्ते निभाना भी सीखे !

फिर,
वो समय आता है जबकि,
पिता और बेटे दोनों को,
अपनी बढ़ती उम्र का,
एहसास होने लगता है,
बेटा अब केवल बेटा नहीं, पिता भी बन चुका होता है,
कड़ी कमज़ोर होने लगती है ।

पिता की सीख देने की लालसा,
और,
बेटे का,
उस भावना को नहीं समझ पाना,
वो सौम्यता भी खो देता है !
यही वो समय होता है जब,
बेटे को लगता है कि,
उसका पिता ग़लत है,
बस इसी समय को समझदारी से निकालना होता है,
वरना होता कुछ नहीं है,
बस बढ़ती झुर्रियां और
बूढ़ा होता शरीर
जल्द बीमारियों को घेर लेता है !

फिर,
सभी को बेटे का इंतज़ार करते हुए माँ तो दिखती है,
पर,
पीछे रात भर से जागा,
पिता नहीं दिखता,
जिसकी उम्र और झुर्रियां,
और बढ़ती जाती है, बीमारियां
भी शरीर को घेर रहीं हैं !

 पिता अड़ियल रवैए का हो सकता है लेकिन वास्तव में वह नारियल की तरह होता है !

कब समझेंगे बेटे,
कब समझेंगे बाप,
कब समझेगी दुनिया.!

पता है क्या होता है,
उस आख़िरी मुलाकात में,
जब,
जिन हाथों की उंगलियां पकड़,
पिता ने चलना सिखाया था,
वही हाथ,
लकड़ी के ढेर पर पड़े
पिता को
लकड़ियों से ढकते हैं,
उसे घी से भिगोते हैं,
और उसे जलाते हैं, इसे ही पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाना कहते हैं !

ये होता है,
हो रहा है,
होता चला जाएगा !

जो नहीं हो रहा,
और जो हो सकता है,
वो ये,
कि,
हम जल्द से जल्द,
कहना शुरु कर दें,
हम आपस में,
कितना प्यार करते हैं.
और कुछ नहीं तो कम से कम घर में हंस के मुस्कुरा कर बात तो की ही जा सकती है, सम्मान पूर्वक !

फिर, समय निकलने के बाद पश्चाताप वश यह ना कहना पड़े-

हे मेरे महान पिता..
मेरे गौरव,
मेरे आदर्श,
मेरा संस्कार,
मेरा स्वाभिमान,
मेरा अस्तित्व...
मैं न तो इस क्रूर समय की गति को समझ पाया..
और न ही,
आपको अपने दिल की बात,
कह पाया...!!

Saturday, August 1, 2020

Mother (माँ)


माँ अर्लाम है, माँ डाक्टर है, माँ हौसला है, माँ हिम्मत है, माँ कमजोरी है, माँ प्यार है, माँ दोस्त है। मेरी तकदीर में एक भी गम न होता, अगर तकदीर लिखने का हक मेरी माँ को होता। हां, दोस्तो! ऐसी ही होती है, माँ। रोटी एक माँगता हूँ, लाकर दो देती हैं। माँ तो सबकी जगह ले लेती हैं, लेकिन माँ की जगह कोई नहीं ले सकता। इसलिए कहते हैं कि कभी अपनी माँ का दिल नहीं दुःखाना चाहिए।

हर रिश्ते में मिलावट हो सकती है लेकिन माँ के रिश्ते में कभी मिलावट नहीं देखी। हम थक जाते हैं, मगर माँ के चेहरे पर कभी थकावट नहीं देखी। दिन भर की थकावट के बाद जब हमें भूख लगती है, तो माँ का खाना याद आता है। वो चूल्हे पर हाथ जलाकर रोटी पकाना और फिर डांट-डांट कर खिलाना याद आता है। याद रखना, जब पूरी दुनिया आपका साथ छोड़ दे, तब भी माँ आपका साथ नहीं छोड़ेगी। वो सदा आपका भला ही चाहती है। जब कभी चोट लग जाती है तब पहला लफ्ज़ मुँह से ’’माँ’’ ही निकलता है। बचपन में बिना बोले माँ हमारी बातों को समझ जाती थी और, आज हम हर बात पर कहते हैं कि माँ, आप नहीं समझोगी। एक माँ ही है, जो बिना छुट्टी और मेहनताना वसूले सालों साल अपनी औलाद के सुखों का ख्याल रखती है।

दुनिया क्या कहती है, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। माँ नौ महीने अपने पेट में रखती है, हमें चलना सिखाती है, जिन्दगी भर अपने दिल में रखती है, उस माँ की कद्र कीजिए। दोस्त पूछते हैं कि कितना कमाया? पत्नी पूछती है कि कितना बचाया? बेटा पूछेगा कि मेरे लिए क्या लाए? लेकिन माँ एक ऐसी शख्सियत है जो पूछती है कि बेटा कुछ खाया कि नहीं!! माँ ईश्वर का प्रतिनिधि है और बच्चों के लिए स्वयं ईश्वर है।