Tuesday, July 30, 2013

खुश रहें - ज्ञान को सर्वोच्च महत्व दीजिये।



चीन के विद्वान ह्वेन सांग ने भारत के नालंदा विश्वविधालय में संग्रहित ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। वह हिन्दू धर्म शास्त्रों से बहुत ही प्रभावित हुआ था. लौटते समय वह अपने साथ असंख्य धर्मग्रंथों को साथ ले चला. रास्ते में एक नदी पड़ी, नदी को पार कराने के लिए  उन्हे एक नाव में बैठाया गया. कुछ भारतीय छात्र भी उसी नौका में बैठे थे. नौका कुछ दूर ही पहुंची थी कि पानी में उठी भंवर के कारण डगमगाने लगी. नाविक ने कहा कि यदि कुछ वजन कम कर दिया जाये तो नौका डूबने से बच सकती है.उसने सुझाव दिया कि पुस्तको के बण्डल को नदी में फेंक दिया जाये। वजन कम होने पर सवारियों के प्राण बच जायेंगे। ह्वेन सांग ने जब ये शब्द सुने तो उनका चेहरा पीला पड़ गया. वह बोले कि अब उनका भारत के धर्म ज्ञान के अध्ययन एवं प्रचार का उनका सपना पूरा नहीं हो पायेगा।नौका में बैठे भारतीय छात्रों ने कहा, 'नहीं, ऐसा नहीं होगा। ज्ञान का प्रसार महत्व पूर्ण कार्य है. यह पूरा होगा।' ऐसा कहकर उन छात्रों ने उफनती नदी में छलांग लगा दी और ग्रंथों की रक्षा में अपनी जान की आहुति दी. ह्वेन सांग ने चीन वापिस पहुँच कर उन ग्रंथों का अध्ययन किया और अनुवाद कर विश्व को भारत के ज्ञान का परिचय कराया। आज भी भारतीय माँ अपने बच्चो को, 'विद्या माता है' कह कर यह संस्कारित करती है कि  किसी ग्रन्थ के किसी भी अंश का अनादर न  हो, यदि भूल से भी हो जाता है, तो मस्तक से लगा कर ईश्वर से माफ़ी मांगी जाये।अपने जीवन की ख़ुशी के लिए ज्ञान को सर्वोच्च महत्व दीजिये।

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