प्रजापति दक्ष अपने दामाद शिव जी से इर्ष्या रखते थे और लगातार उनके
अपमान का बहाना की खोज करते रहते थे. एक बार उन्होंने शिव जी को नीचा
दिखाने के लिए महायज्ञ का आयोजन किया और सर्व यज्ञो के पारंगत महर्षि दधीचि
सहित देवर्षियों, महर्षियों और देवताओ को निमंत्रन भेजा, किन्तु अपनी
पुत्री सती और दामाद शिव जी को आमंत्रित नहीं किया। महर्षि दधीचि ने शिव
जी एवं पुत्री सती की अनुपस्थिति देखकर दक्ष को समझाया कि भगवान शंकर की
कृपा के बिना कोई यज्ञ सफल नहीं हो सकता। जलन के साथ किया गया कोई भी कार्य
विनाश का कारण बनता है, भले ही वोह सत्कर्म क्यों न हो. इसलिए अपनी
इर्ष्या त्याग कर भगवान शंकर को सादर आमंत्रित किया जाये ताकि महायज्ञ सफल
हो. यह सुनते ही प्रजापति दक्ष आग बबूला हो गए और अपने दामाद शिव जी के
विरुद्ध अपशब्दों का इस्तमाल करते हुए यज्ञ आरम्भ करने के लिए कहा. उनके
प्रताप के कारण वहां उपस्थित सभी देवर्षियों, महर्षियों और देवताओ ने
विरोध नहीं किया मगर महर्षि दधीचि ने निर्भीकता से कह दिया कि शिव जी के
प्रति उनके अपशब्द असहनीय हैं इसलिय वह उन्हे श्राप देते हैं कि यह महायज्ञ
उनके कल्याण करने के स्थान पर उनके विनाश का कारण बनेगा। भगवान शंकर की
क्रोधाग्नि में सब कुछ भस्म हो जायेगा, और यह कहकर महर्षि अपने आश्रम
वापिस चले गए.इसी यज्ञ में भगवती सती ने आत्मदाह किया और यही यज्ञ राजा
दक्ष के अपशब्दों के कारण उनके विनाश का कारण बना।
ऐसे ही महाभारत काल
में जब जयदर्थ ने 1 0 0 बार भगवान कृष्ण के विरुद्ध अपशब्दों का प्रयोग
किया था, भगवन ने क्षमा कर दिया मगर जब जयदर्थ ने फिर गाली दी तब भगवान
कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसे सजा दी थी. आज भी इंसान अपशब्दों का प्रयोग करने से बेवजह क्रोध का कारण बन कर बहुत नुकसान कर बैठता है. इसलिय अपनी ख़ुशी के लिए अपशब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
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